शनिवार, 18 जुलाई 2009

मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,

अटल जी एक कुशल राजनेता के अलावा एक अच्छे कवि भी है .उनकी कविताये कालजई है .अटल जी स्वीकारते है की राजनितिक व्यस्तता के चलते उनका कवित्व रूप उनसे दूर होता गया । मै अटल जी को भारतीय राजनीति के एक ऐसे महापुरुषों में रखना चाहूगा जो अविरल प्रतिभा का धनि है । न भूतो न भविष्यते एसा नेता होगा। उन्ही एक कविता मै अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ .जो आज के अति महत्वाकांक्षी जीवन में एक प्रेरणा का काम करेगी। अटल जी ने इस कविता को अपने जीवन में भी उतारा इसी लिए वह अपने विरोधियो के बीच में भी प्रिय रहे । और २७ दलों को एक साथ लेकर ६ साल तक हिंदुस्तान की सत्ता को संभाला । संभवतया वह विश्व के पहले नेता थे।

रचनाकार: अटल बिहारी वाजपेयी
ऊँचे पहाड़ पर,पेड़ नहीं लगते,पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,जिसका परसपानी को पत्थर कर दे,ऐसी ऊँचाईजिसका दरस हीन भाव भर दे,अभिनंदन की अधिकारी है,आरोहियों के लिये आमंत्रण है,उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है किकेवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,परिवेश से पृथक,अपनों से कटा-बँटा,शून्य में अकेला खड़ा होना,पहाड़ की महानता नहीं,मजबूरी है।ऊँचाई और गहराई मेंआकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है किऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,जिससे मनुष्य,ठूँठ सा खड़ा न रहे,औरों से घुले-मिले,किसी को साथ ले,किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

हिन्दी नही जानते का जी ..

१५ जून को लोकसभा में भाषा को लेकर थोडी नोक झोक हो गई । प्रारम्भ एक पंजाबी नेता के पंजाबी में भाषण देने से हुई जिस पर मैडम स्पीकर मीरा कुमार ने ये कहकर आपत्ति जताई की [पंजाबी में बोलने के लिए नेता जी ने पहले से कोई नोटिस नही दी है । जिसपर नेता जी ने कहा की वह हर काम पंजाबी में ही करते है । माना ये ठीक है की पंजाबी भाषा संविधान में है पर संसद की भाषा हिन्दी और अंग्रेजी ही है लगभग सभी पंजाबी नेता हिन्दी में ही बोलते है । शायद नेता जी को मराठी प्रेम की ही तरह पंजाबी प्रेम जगा हो।

भाषा को लेकर एक दिलचस्प वाकया तब हुआ जब हमारे उत्तर प्रदेश के हिन्दी प्रेमी नेता मुलायम सिंह (नेता जी) द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने अंग्रेजी में देना शुरू किया , इसपर तुंरत नेता जी उठे और जय राम को टोकते हुए बोले की क्या आपको हिन्दी नही आती ,क्या ये लन्दन की लोक सभा है । मुझे अंग्रेजी नही आती। इस पर जैराम रमेश को कहना पड़ा की ठीक है मई हिन्दी में ही बोलता हूँ। इसी तरह जब मेनका गाँधी ने भी अपने प्रश्नों को अंग्रेजी में बोलना शुरू किया तो नेता जी ने टोकना शुरू किया पर इस बार मेनका ने उन्हें झिड़क दिया और कहा की मई किसी भी भाषा में बोलू इससे आप को क्या । वही पूर्व रेल मंत्री लालू को ये सिद्ध करना पड़ा की उन्हें अंग्रेजी आती है। पर्यावरण के मसले पर बोलते हुए लालू ने ग्लोबल वार्मिंग को ग्लोबल वार्निंग कह दिया जिस पर बगल के सीट पर किसी दुसरे पार्टी के नेता ने चुटकी लेनी शुरू की इस पर लालू ने भी अपने अंदाज में बताया की "हमको भी अंग्रेजी आता है "

बात भाषा के आने या न आने का नही है पर इतना जरूर होना चाहिए की देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी भाषा का प्रयोग अधिकत्तम होना चाहिए जो अधिकत्तम लोगो की समझ में आए । मेरी समझ से हिन्दी एक एसी भाषा है जो लगभग ९० से ९५ % लोगो की समझ में आती है और वह लिख बोल सकते है कई साउथ के नेता हिन्दी बोलते नज़र आते है ।वेंकेया नायडू ,अनंत कुमार जैसे नेता बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते है नरसिम्हा राव को याद करना चाहता हूँ जो १६ भाषाओ के ज्ञाता थे लेकिन हर जगह हिन्दी ही बोलते थे .और बड़ी ही शुद्ध हिन्दी थी उनकी जबकि वह दक्षिण के थे
संसद में सांसदों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की जो हिन्दी में बोल सकते है वह हिन्दी में ही बोले श्री प्रकाश जैसवाल की तरह नही कीहर काम हिन्दी में करे और जब संसद में मंत्री पड़ की सपथ लेनी हो तो अंग्रेजी बोलने लगे । अगाथा संगमा ने एक अलग मिसाल पेश की और टूटी फूटी ही सही लेकिन हिन्दी में ही शपथ ली और सबका दिल जीत लिया ..इस मायने में मई सोनिया गाँधी की तारीफ करूँगा जिन्होंने दिन प्रतिदिन अपनी हिन्दी में सुधर किया । पर मनमोहन सिंह से निराश हूँ जो पंजाब का होने के बावजूद भी हिन्दी नही बोल paate और जब अंग्रेजी भी बोलते है तो आधा समझ में नही आता । लालकिले की प्राचीर से जो प्रधानमंत्री हिन्दी में हिन्दुस्तानी जनता से अपनी बात न कह सके उससे तो येही लगता है की वह आज भी मैकाले की नीति को भूलना नही चाहता । मनमोहन के अन्दर इतनी भी इच्छा शक्ति नही की की वह अपनी हिन्दी में कुछ sudhaar कर ले जिससे लालकिले के ऊपर खड़े होकर तो हिन्दी में बोल सके ।
राममनोहर लोहिया जो अंग्रेजी के विद्वान थे लेकिन जीवन भर हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए लड़ते रहे । हरिबंश राइ बच्चन जो अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन विश्व उन्हें उनकी हिन्दी रचनाओ के लिए जनता है । महात्मा गाँधी ने हिन्दी के महत्ता को जाना और इसके लिए उन्होंने अपनी भाषा गुजरती को भी दुतियक श्रेणी में रखा । और अंत समय उन्हें ये कहना पड़ा की "गाँधी सिर्फ़ हिन्दी जनता है "गाँधी ने कांग्रेस के जनाधार को बढ़ने के लिए हिन्दी भाषा का ही सहारा लिया । जिसमे वह पूर्णतः सफल भी हुए ।
भारत में हिन्दी एक संचार की भाषा है। साउथ का भी आदमी महाराष्ट्र में आकर हिन्दी का ही सहारा लेता है क्योकि वह मराठी नही जानता और अंग्रेजी में वह बात नही कर सकता क्योकि जिस तरह हिन्दी भाषी अंग्रेजी में कमजोर होते है उसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषी लोग भी अंग्रेजी में पारंगत नही होते। लेदेकर हिन्दी ही बचती है जिनसे लोग आपस में बातचीत करते है । दिल्ली और मुंबई दो ऐसे प्रदेश है जिनकी तरफ़ पुरे देश के लोगो की निगाहें रहती है इस लिए भी हिन्दी यहाँ एक संचार की भाषा के रूप में कार्य करती है ।
मेरा तो माना है की आप सभी भाषाओ को नही सीख सकते है पर अगर आप हिन्दी को जानते है तो ये सभी भाषाओ को जानने के बराबर कम करेगी। हिन्दी जानना ही आपके हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण है इसी लिए यु एन ओ महा सचिव बन की मून को भी नमस्कार कहने में आनंद आता है । १४ सितम्बर के दिन हर साल हिन्दी के क्षरण होने का रोना कुछ कथित बुधिजिवियो द्वरा रोया जाता है पर हकीकत ये है की हम्मे से कोई ज़मीनी स्तार पर कुछ नही करता है । अंग्रेजी हमें jaanani चाहिए की दुनिया के सामने मुरख न बन सके पर हमें अपनी मानसिकता को हिन्दीमय ही रहने देना चाहिए ताकि विदेशियों को ये लगे की भारत को समझने के लिए पहले हिन्दी को जानना जरूरी है ।भारत में अनेक विशेषताए निवास करती है इस लिए चाहिए की सभी क्षेत्रीय भाषाओ का सम्मान करते हुए हिन्दी को भारत की सार्वभौमिक भाषा बनने पर जोर दिया जाए। और संसद में किसी नेता को ये न कहना पड़े की क्या ये लन्दन की लोकसभा है जो अंग्रेजी बोले जा रहे हो .....

बुधवार, 1 जुलाई 2009

कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नही मारा करता ..

बहुत दिनों बाद मै अपने आँगन पे दस्तक दे रहा हूँ। लगभग ब्लॉग की दुनिया से कट सा गया था ।
जीवन के उतार चढाव भरे माहौल में कभी कभी आदमी अपने आप से भी कट जता है .मै भी कुछ इसी तरह से कट सा गया था लेकिन फ़िर वापस आया हूँ ॥ मै जब भी निराश होता हूँ तो कवि नीरज की इस कविता को जरूर पढता हूँ..जो मेरे अन्दर के नैराश्य भाव को कुछ हद तक कम करती है ॥ दोस्तों मै नीरज की इस कविता को अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ॥
रचनाकार: गोपालदास "नीरज"
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है