बुधवार, 1 जुलाई 2009

कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नही मारा करता ..

बहुत दिनों बाद मै अपने आँगन पे दस्तक दे रहा हूँ। लगभग ब्लॉग की दुनिया से कट सा गया था ।
जीवन के उतार चढाव भरे माहौल में कभी कभी आदमी अपने आप से भी कट जता है .मै भी कुछ इसी तरह से कट सा गया था लेकिन फ़िर वापस आया हूँ ॥ मै जब भी निराश होता हूँ तो कवि नीरज की इस कविता को जरूर पढता हूँ..जो मेरे अन्दर के नैराश्य भाव को कुछ हद तक कम करती है ॥ दोस्तों मै नीरज की इस कविता को अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ॥
रचनाकार: गोपालदास "नीरज"
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है

4 टिप्‍पणियां:

ACHARYA RAMESH SACHDEVA ने कहा…

YUSHKARIYA.
HAMARE SCHOOL KE PRARENA GEET H YEH
KHAIR ACHHA LAGA AAPKE BLOG KE MADHYAM SE.
RAJSTHAN BOARD KI HINDI BOOKS MEIN YEH H, PRANTU ADHURI H YEH KAVITA AAJ PRUI PADH PAYA HU.
RAMESH SACHDEVA
hpsdabwali07@gmail.com

शारदा अरोरा ने कहा…

सोचने को विवश करती बड़ी सुन्दर कविता पढ़वाई आपने | हम सब आज भी बच्चे ही हैं फर्क इतना है कि हमारे खिलौने बड़े बड़े हो गए हैं , हमारी बात पूरी न होने पर हम आज भी जार-जार रोते हैं|
और ये ब्लॉग आँगन जैसे बच्चों के खेलने का , बच्चों का मन भी वहीं रमता है , जब देखो तब वहीं पहुँच जायेगे , आप कैसे इतने दिन दूर रहे ?

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर विचार .. और इन्‍हे बडी खूबसूरती से शब्‍दों में पिरोया है .. सच है .. सपने वैसे ही आते जाते हैं .. उनसे जीवन को प्रभावित नहीं होना चाहिए।

Udan Tashtari ने कहा…

नीरज जी की यह रचना हमेशा दिल के करीब रहती है.