शनिवार, 20 दिसंबर 2008

इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र...

इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र है,
कौन जाने यह भला किसका कहर है?

आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?

ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?

स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?

हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?

मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?

उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

मौत...

मौत को आज मैंने जाना है,
और जीवन को भी पहचाना है।

ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।

ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।

मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।

जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

जानवर हो गए हैं हम...

साहिल थे कभी आज लहर हो गए हैं हम
इस जहाँ को सुधा दे ख़ुद ज़हर हो गए हैं हम।

आज हम ख़ुद को यहाँ ढूंढते फिरते रहे हैं
दुनिया की इस भीड़ में जाने कहाँ खो गए हैं हम।

हम जगाते थे जहाँ को रात और दिन जागकर
क्या हुआ जो आजकल ख़ुद भी सो गए हैं हम।

हमने ही लाशें बिछाई भूलकर सब रिश्तों को
याद करके उनको फ़िर क्यूँ आज रो रहे हैं हम।

जानवर थे हम कभी, आदमी फ़िर बन गए
आदमी से आज फिर जानवर हो गए हैं हम।

रब ने नही बनाई जोड़ी

लगभग एक महीने से मै ''रब ने बना दी जोड़ी''फ़िल्म के दो गाने ''हौले हौले हो गया है प्यार ...''और ''तुझमे रब दीखता है ...''सुन रहा था ,मुझे दोने गाने बहुत अच्छे लगे , फ़िल्म १२ दिसम्बर को रिलीज़ होनी थी .मैंने सोच लिया था भले ही पहले दिन का पहला शो न देख पाऊ लेकिन पहले दिन जरूर देखूँगा । लेकिन मेरा दुर्भाग्य रहा की मै लगातार तिन दिन सिनेमा हॉल गया लेकिन मुझे टिकेट नही मिला .मै हर बार मायूस होकर वापस लौट आता था । मेरा लाइन में खड़ा होना बेकार चला जता था क्योकि मेरे टिकेट खिड़की तक पहुचने से पहले ही हाउसफुल का बोर्ड लग जाताथा । । मुझे तीन तक टिकेट नही मिला इससे मै और पुख्ता हो गया की फ़िल्म अच्छी है । अखबारों और चैनल में फ़िल्म की सकारात्मक प्रतिक्रिया आ रही थी । मेरी बेक्लाहत और भी बढती जा रही थी । मेरेइस बैचनी को मेरे मित्र भी जान गए थे .मैंने भी अपने आप को समझाते हुए तय किया की जब थोडी भीड़ कम होगी तो ही मै जाऊँगा । तीन दिन की मायूसी के बाद चौथे दिन मेरे लिए एक आशा की किरण जगी,जब मेरे एक मित्र ने करीब सवा दो बजे केबीच मुझे फोन किया की मै ज्योति टाकिज पे खड़ा हूँ ,तुम्हे भी तीन बजे के शो का टिकेट चाहिए क्या ?मेरे चेहरे पे एक मुस्कान आई और मैंने तुंरत हामी भर दी और तुंरत सिनेमा हाल की तरफ़ बढ़ गया।


अब मै आपको वह वाकया बताने जा रहा हूँ जिसके कारन मुझे अपने लेख का शीर्षक ''रब ने नही बनाई जोड़ी ''रखना पड़ा । सिनेमा हाल ,मै थोड़ा लेट से पंहुचा मेरे मित्र अन्दर जा चुके थे । हाल के अन्दर गार्ड टार्च जलाकर लोगो को अपने सीट पे बैठा रहा था ५ minat की फ़िल्म चल चुकी थी ,मेरे मित्र अभी हाल के अन्दर ही थे मै पंहुचा । गार्ड हम लोगो को भी बैठाने लगा । दुर्भाग्य से हम दोस्तों में , चार लड़के और दो लड़किया थी ,मेरे दो पुरूष मित्र अपने अपने महिला मित्रो के साथ अगल बगल बैठ लिए । बच गया मै और मेरे एक पुरूष मित्र । संयोग से गार्ड ने मुझे जिस सीट पे बैठने को कहा उसके बगल मेरे एक खूबसूरत लड़की बैठी थी मै भी बिना किसी संकोच के बैठ गया लेकिन जब बगल मेरे कोई खूबसूरत लड़की हो तो क्या फीलिंग होती है ये सब बखूबी जानते ही होगे । लेकिन मेरे पुरूष मित्र को ये थोड़ा अच्छा न लगा और उनकी अन्दर की भावना जुबान पे आ ही गई और उन्होंने मुझसे कह ही दिया की यार मुझे वहा बैठना था तू बैठ गया ,मैंने भी उनकी बात को मजाक बनाते हुए कहा की कोई बात नही यार तू बैठे या मै एक ही बात है ... ये तो पुरूष स्वभाव है की जब कोई खूबसूरत लड़की बगल मै बैठी हो तो आदमी थोड़ा स्मार्ट बनने की कोशिश करता ही है । हालाँकि मेरे अंदर भी एक हलचल थी लेकिन मैंने स्मार्ट बनने की कोशिश नही की । मेरे बगल , कोई अनजानी लड़की बैठी हो ये वाकया मेरे साथ पहली बार था इसलिए मै थोड़ा असहज था । मैंने सैकडो फिल्म सिनेमा हाल मै देखि है लेकिन ऐसा पहली बार था जब कोई खूबसूरत लड़की मेरे बगल मै बैठी हो । मै थोड़ा असहज हो गया ,पता नही क्यो ?लेकिन फ़िल्म रब ने बना दी जोड़ी की कहानी ज्यो-ज्यो आगे बढ़ रही थी मेरे अन्दर भी एक अजीब सा भाव उत्पन्न हो रहा था। मेरा मानना है की ऐसा अक्सर लोगो के साथ होता है जब कोई अनजान खूबसूरत लड़की बगल में बैठी हो तो वह थोड़ा असहज हो ही जाता है .मामला तब और दिलचस्प हो जाता है जब आप बैठे हो , आपका हाथ या पैर उसके हाथ या पैर से छू जाए । मैंने कई फिल्मो में देखा है की ट्रेन की मुलाक़ात ,किसी जगह की मुलाक़ात या कही भी अचानक हुई मुलाक़ात से हीरो और हेरोइन में प्रेम हो जाता है ,और फ़िल्म के समाप्त होने तक दोनों का प्रेम सफल भी हो जाता है । मेरे अन्दर भी उसी तरह की भावना उफान करने लगी ,हालाँकि मै शुरू में उस लड़की को ठीक से नही देख पाया लेकिन ये जान गया था की वह खूबसूरत है। जब मैंने अपना हाथ सीट के हत्थे पे रखा तो मेरा हाथ उसके हाथ से छू गया ,मुझे तो कुछ अजीब सा अनुभव हुआ ,जैसा की अमूमन लड़किया करती है उसके विपरीत उस लड़की ने अपना हाथ नही हटाया .शायद उसको इस बात का अहसास न हो या ये उसके लिए बड़ी बात न हो । लेकिन मेरे मन में तो उथल पुथल लगी । शायद मुझे फिल्मो की बात उस समय सत्य लगी। ज़ाहिर सी बात है की जब इस तरह का अहसास मन में होने लगे तो मूल बातो से मन भटक जाता है । मेरे हाथ और उसके हाथ जाने अनजाने में टकरा जा रहे थे ,मेरा ध्यानफिल्मो से थोड़ा हटता जा रहा था ,तभी फ़िल्म का लोकप्रिय गीत हौले हौले हो जाए रे प्यार ...शुरू हो जाता है मेरे मन ने भी यही सोचा की शायद हमारा प्यार भी कही इसी सिनेमा हाल में हौले हौले शुरू हो जाए ,और मुझे भी कहना पड़े की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। फ़िल्म अपने गति से बढ़ रही थी और शाहरुख़ अपने दोनों किरदारों को बखूबी निभा रहे थे । इंटरवल तक हमारे पैर भी एक बार टकरा गए और हम दोनों ने सॉरी कहकर अपने को बचाया । फ़िल्म के बीच बीच में मेरी नज़र उस खूबसूरती की तरफ़ घूम जा rअहि थे पर स्पष्ट चेहरा दिख नही पा रहा था क्योकि हाल में अँधेरा था । कुछ समय के लिए मै फ़िल्म में ही खो गया तो मै ने थोडी सी फ़िल्म को समीक्षात्मक रूप में देखने की कोशिश की , फ़िल्म को देखकर मुझे ॐ शान्ति ॐ की याद आ गई ,उसमे भी एक गाने में फरहा खान ने कुछ बड़े स्टार्स को लाकर नचाया था और इस फ़िल्म में भी आदित्य चोपडा ने कुछ बड़ी हेरोइनो को नचाया , फ़िल्म के एक गाने पुराणी फिल्मो के गाने को तोड़ मरोड़ कर बनाया गया था , इससे लगता है की अब फिल्मो में नए विचारों का अकाल सा होता जा रहा है वही पुराणी घिसी पीती कहानिया दर्शको को परोसी जा रही है ,हालाँकि ''रब ने बना दी जोड़ी ''को आदित्य ने थोड़ा अलग रखने की कोशिश की है । शाहरुख़ ने एक मध्यम वर्ग के कलर्क का रोल करने में भी वही पुराना टाइप्ड तरीका अपनाया ,शाहरुख़ की प्रतिभा पे शक नही किया जा सकता ,लेकिन अगर आदित्य ने उभरती प्रतिभा श्रेयश तलपडे को ये रोल देते तो और मज़ा आता । मैंने वेलकम तू सज्जनपुर में उनके अभिनय को देखा है ,लाजवाब था ।
तभी इंटरवल होता है और हाल की लाइट जलती है मुझे एक मौका मिला की मै उस खूबसूरती को गौर से निहार सकू । मेरी नज़र सहसा उसकी तरफ़ चले गए ,उसने भी बिना भाव के एक नज़र मेरी तरफ़ देखा ,पर तुंरत अपने साथ आई सहेलियों से बात करने लगी । इंटरवल में , मेरे बगल में बैठे मेरे पुरूष मित्र अब भी मुझे कोसने से न चुके । खैर मै तो दूसरी दुनिया में विचरण कर रहा था ,और इस मुगालते में था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। इंटरवल के बाद फ़िल्म शुरू होती है ,कुछ देर बाद शाहरुख़ अपने दुसरे किरदार ''राज''के रूप में गाना गाते है की ''तुझमे रब दीखता है''...जिसमे मै खो गया और मुझे भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ । फ़िल्म का ये गाना मेरे दिल को छूता है । फ़िर कुछ प्रेम संवाद फ़िल्म में चलते है पुरा हाल बड़े ध्यान से सुन रहा है और मेरा ध्यान अब भी फ़िल्म के नाम ''रब ने बना दी जोड़ी ''पे टिका है। मुझे ऐसा लगने लगा की फ़िल्म मेरे अन्दर उतर रही है और फ़िल्म की नायिका तानिया (अनुष्का ) मेरे बगल में बैठी हो । लेकिन मेरे साथ फ़िल्म के एक और कलाकार विनय पाठक जैसा दोस्त नही है । फ़िल्म धीरे धीरे समाप्त हो रही थी ,मै भी फ़िल्म चुप चाप देखता रहा और कभी कभी हाथ और पैरो के छू जाने पे असहज होता रहा । फ़िल्म तो अपने सकारात्मक क्लैमेक्स की तरफ़ जा रही थी ,लेकिन मेरे क्लैमेक्स का पता नही था । शाहरुख़ अपनी हेरोइन तानिया को अपने मूल किरदार (सुरिंदर सहनी ) के रूप में पाने में सफल हो रहे थे । तानिया ने अमृतसर के स्वर्ण मंदीर में सुरिंदर सहनी के चेहरे में ही अपने रब को देखा ,''राज'' (फ़िल्म में शाहरुख़ का दूसरा किरदार ) का प्रेम उसके लिए झूठा प्रतीत होने लगा । देखते ही देखते फ़िल्म समाप्त हो जाती है लाइट जलती है , मेरे बगल में बैठी वो खूबसूरत लड़की तुंरत उठती है और अपने सहेलियों से जोर जोर से बात करते हुए बालकनी से निचे उतारते हुए बाहर जाने लगती है , मेरा दाहिना हाथ अब भी सीट के हत्ते पे ही टिका है ,तभी मेरे पुरूष मित्र मेरा बाया हाथ पकड़कर मुझे चलने को कहते है और मै हाल से बाहर जाती उस खूबसूरती को निहार रहा था । हाल में ढाई घंटे कैसे बीते पता ही नही चला । फ़िल्म में शाहरूख की जोड़ी तो रब ने बना दी लेकिन मेरी जोड़ी रब ने नही बनाई । और फ़िल्म के शुरू में मुझे जो अहसास हुआ था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''वह फ़िल्म के अंत में काफूर हो गया ,और मेरे मुह से निकला की ,,''रब ने नही बनाई जोडी '' प्यार को कैसे आगे बढाया जता है ये मुझे मालूम नही ,और न ही मैंने किसी से वेलेंटाइन प्रेम किया है इस मामले में मै बिल्कुल गवार हूँ। इसी लिए शायद ये नही जान पाया की पिकनिक स्पॉट ,ट्रेन बस की यात्रा ,रास्ते में किसी से मुलाक़ात,या सिनेमा हाल में जब किसी से आँखे चार होती है तो वह kshan भर के लिए ही होती है । इसकी मियाद सिर्फ़ उसी समय के लिए ही होती है ,जैसा की मेरे साथ हुआ ।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

आख़िर पाक ने दिखा ही दी अपनी औकात.

आतंकवाद के खिलाफ पकिस्तान का कुछ दिन पूर्व आया बयान काफी सराहनीय था। अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते उसने लश्कर के एक संगठन जमात उद दावा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। साथ ही इसके दफ्तरों को सील कर दावा प्रमुख मौलाना अब्दुल अज़ीज़ अल्वी को नज़रबंद भी कर दिया था। पाकिस्तान ने जमात के चार आतंकियों को भी गिरफ्तार कर अपनी आतंक के खिलाफ सहयोग करने का दिखावा कर दिया। लेकिन पाकिस्तान की इस कार्रवाई को शुरू से ही संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। अब सोमवार को पकिस्तान ने न सिर्फ़ दावा प्रमुख अब्दुल अज़ीज़ की नज़रबंदी हटा दी बल्कि गिरफ्तार किए चार आतंकियों को भी रिहा कर दिया है। इससे पकिस्तान के मनसूबे साफ़ हो गए हैं। उसने यह साबित कर दिया कि दुनियाभर में आतंकवादियों और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन देने में पाकिस्तान भी सहयोग कर रहा है। परसों ही पाकिस्तानी संसद में पाक प्रधानमंत्री का यह बयान कि वे अंतर्राष्ट्रीय दबावों में आकर कोई कदम नहीं उठाएंगे। साथ ही भारत के किसी भी कार्रवाई का मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का इतना गैर जिम्मेदाराना बयान हो सकता है कि विपक्ष को शांत करने के लिए दिया गया हो, लेकिन यह बयान न सिर्फ़ दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि आतंक के विरुद्ध पाकिस्तान कि कटिबद्धता पर भी सवाल खड़े करता है। इन सभी बातों पर और पाकिस्तान के आतंक के प्रति रवैये से स्पष्ट हो गया है कि सांप को अब ज्यादा दिन तक पालना ठीक नहीं है। इसके पहले कि वह देश दुनिया में अपना ज़हर फैलाये, उसे कुचलकर मार डालना चाहिए।
वैसे भारत के सामने पकिस्तान ही एक खतरा नहीं है, बल्कि कई पश्चिमी देश भी हिन्दुस्तान कि प्रगति में बाधक बने हैं। ये देश चाहते ही नहीं कि भारत-पाक के बीच तनाव कम हो और एशिया में शान्ति व्याप्त हो, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में विकास तेजी से होगा और भारत और चीन को महाशक्ति बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। इसीलिए अभी भारत को हर मुद्दे पर फूँक-फूँक कर कदम रखने कि ज़रूरत है और आतंक के ख़िलाफ़ स्वयं ही कड़े कदम उठाने कि आवश्यकता है।

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

आम न लागे ख़ास ...

बहुत दिनों बाद 'अपने आंगन 'में आ रहा हूँ । मुंबई में हुए आतंकी हमलो के बाद कुछ लिखा ,उसके बाद गायब हो गया ,मित्र टोकने लगे की विवेक "आंगन आज कल सूना-सूना लग रहा है कहा गायब ही गये । मैउन्हें कुछ स्पस्ट जवाब न दे सका और सिर्फ़ मुस्करा कर कहा की जल्द ही लौटूंगा 'अपने आंगन' में । आतंकी हमलो के बाद देश में जो घटना क्रम चल रहा है उसे मै भी दूर से भोपाल में बैठा संचार माध्यमो के द्वारा देख रहा हूँ। मै तो "आम"हूँ इसलिए दिल्ली में जाकर नजदीक से "खास" लोगो के बीच गतिविधियों का जायजा नही ले सकता । दिल्ली में खूब बहस चल रही है की कैसे आतंकवाद से निपटना है। इसी निपटने के बहस में देश के गृहमंत्री ,महारास्ट्र के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को भी निपटाया गया .नए राजा और वजीर भी नियुक्त कर दिए गए । लेकिन एक यक्ष प्रश्न अभी भी बाकी है की क्या इन ख़ास लोगो के बदलने से 'आम 'लोगो की जिंदगी भी सुरक्षित हुई की नही । क्योकि इस पर बहस अभी बाकी है । दिल्ली कितनी गंभीर है वह साफ़ दिख रहा है दिल्ली में विराजमान लोगो की गंभीरता पे एक शेर याद आ गया की ॥
"पौधे झुलस गए है ,
मगर एक बात है ,
दिल्ली की नज़र में अब भी
चमन है हरा भरा ।"
२६ तारिख से लेकर आज तक १५ दिन बीत गए कोई भी ठोस आकार दिल्ली से हमारे सामने नही आ सका की हमारे आका लोग क्या आगे करेंगे । मुझे बहुत अच्छा लगा जब राहुल गाँधी ने संसद में अन्य वक्ताओं से अलग 'आम आदमी' की सुरक्षा की बात उठाई । शायद उन्हें आभास है की जिन खास लोगो की सुरक्षा में लोग लगे है उनकी गिनती आम लोगो में होती है । बहुलता भी आम लोगो की है ,और अभी जो लोग गुस्से में सडको पे मार्च कर रहे है वह भी आम लोग ही है ,मुंबई में गेटवे ऑफ़ इंडिया पे विरोध में जमा हुए लोगो में आम लोग ही ज़्यादा थे ,बस आगे की एक लाइन खास लोगो की अर्थात मुम्बैया हीरो लोगो की थी .जो शायद पहली बार इस तरह की घटना पे इतने परेशां दिख रहे है । और हो भी क्यो न ,शायद इन लोगो के लिए १९९३ का विस्फोट उतना गंभीर न रहा हो क्योकि उसमे मरने वाले सभी आम लोग ही थे और जो एक आदमी उसका आरोपी था वह इन्ही लोगो के बीच का था । लेकिन इस बार जो हमला था वह मुंबई के दिल यानी दक्षिण मुंबई पे था जहा भारत की शान ताज और मुंबई का टॉप होटल ओबेरॉय है जहा आम आदमी जाने के बारे में सोच भी नही सकता .वह तो दूर से ही अपने बच्चो को दिखता है की बेटा ये ताज होटल है जो देश के प्रमुख उधोगपति रतन टाटा का है .लेकिन जो खास लोग है उनकी सभी पार्टिया इन्ही होटलों में होती है शायद इसी लिए ये खास चिंतित है की मुंबई में यही कुछ ऐसे जगह है जहा ये अपने आनंद को पुरी तरह से भुना सकते है जब ये जगह भी असुरक्षित हो जाएगा तो क्या होगा ..मै इन ख़ास लोगो को बता दू की जब भारत का संसद महफूज नही रहा तो अन्य जगह की सुरक्षा की बात अब सोचना बेमानी होगी । जब दिल्ली ,जयपुर ,लखनऊ ,अहमदाबाद में विस्फोट हुए तो तो ये मुम्बैया हीरो विचलित नही हुए ,तब अमिताभ को कोई डर नही लगा की की वह तकिये के निचे पिस्तौल रख के सोये । लेकिन जब आतंक अपने दरवाजे पे आके खड़ा हुआ तो दुसरो का डर समझ में आया । कश्मीर में कई दशको से आतंक फैला हुआ है ,फैजाबाद ,बनारस ,सूरत,मलेगावं ,गोरखपुर जैसी छोटी जगहों पे विस्फोट हुए लेकिन सरकार सोई रही क्योकि यहाँ आम लोगो की जाने गई ,आम लोगो की पत्निया विधवा हुई ,आम लोगो के बच्चे अनाथ हुए ,। लेकिन जब हमला ताज होटल पे हुआ जहा कम से कम करोड़पति ही जाना पसंद करता है और जिसका मालिक खरबपति से भी ऊपर है तब सरकार अधिक विचलित हुई तब उसे ये अहसास हुआ की अब शायद आतंक हमारे सीने पे चढ़ चुका है । मै ये नही कहता की खास लोगो की सुरक्षा का कोई मतलब नही है उन्हें भरपूर सुरक्षा मिले क्योकि वह कही न कही हमारे व्यवस्था के लिए मत्वपूर्ण होगे । लेकिन मै ये कहना चाहता हूँ की जिन छोटी जगहों पे आतंकी हमले हुए अगर उसी समय हमारा तंत्र सचेत होकर कठोर निर्णय लेता तो आज ये नौबत ही नही आती ।
तब मुझे ये आम और खास पे टिपण्णी नही लिखनी पड़ती वैस तो आम और खास में और भी लेबल पे भिन्नता है हमारी व्यवस्था ने "आम"और "खास" लोगो के बीच एक बड़ा अन्तर करके रखा है .इसीलिए तो आम आदमी हर रोज मरने के लिए तैयार रहता है क्योकि मरने का डर उसे उसके जिंदा रहने का अहसास दिलाता है ,सुरक्षा तंत्र से घिरे लोग तो कभी जिंदा रहते ही नही। इसीलिए शायद किसी ने सही ही कहा है की
"मौत के डर से नाहक परेशां है ,
आप जिंदा कहा है की मर जायेगे "
और यही बात मै भी कहता हूँ की "आम न लागे खास "अर्थात जिंदगी तो सिर्फ़ आम लोगो के पास ही है।

शनिवार, 29 नवंबर 2008

न कोई मराठी,न कोई गुजराती हम सब भारतवासी

मुंबई की आतंकी घटना ने क्षेत्रवाद और भाषावाद की राजनीति करने वाले नेताओ के मुह पर एक जोरदार तमाचा मारा है .अब तक राज ठाकरे ने अपने घर से निकल कर कोई बयान नही दिया और न ही महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद की राजनीति के अगुआ बाला साहब ठाकरे ने ही कोई दहाड़ लगाई.ये माना जा सकता है की बाला साहब अब बूढे हो चले है, दहाड़ लगाने में असमर्थ है लेकिन गरम खून वाली नव निर्माण मराठी सेना कहा चली गई ,वह क्यो नही आतंकियों का सामना करने के लिए अपने बिलों से बहार आई .नव निर्माण सेना के बांकुरों को पता है की आतंकी कोई भोले भाले बिहारी नही है जिनपर आसानी से डंडो से हमला कर के उनको डराया जा सके .आतंकी तो खालिस क्रूर विदेशी है जो आधुनिक हथियारों से लैस है ,जिनसे नव निर्माण सेना के टट्टू पार नही पा सकते .इनके बस का नही था आतंकियों से लड़ना ।
इन आतंकियो से तो हमारे जाबांज सिपाहियों ने लोहा लिया और इनको मार गिराया .राज ठाकरे को ये जान लेना चाहिए की जिस मुंबई को वह सिर्फ़ अपना बताते है ,उस मुंबई की रक्षा वो जाबांज सिपाही कर रहे थे जो भारत के भिन्न राज्यों से आते है .वे पुरे भारत से आते है .जी हा जाबांज सिपाहियो में कोई यू पी का था कोई दिल्ली का कोई उत्तराखंड का तो कोई कर्नाटका का .इन सिपाहियों के मन में तो ये था की ये हमला केवल मुंबई पे नही वरन पुरे भारत पर था .लेकिन राज ठाकरे को तो ये लगता है की मुंबई तो आमची है .राज ठाकरे को तो अब ये जान लेना चाहिए की मुंबई आमची नही सबकी है .क्योकि ये भारत की राजधानी है ,जो पूरे भारत के लोगो के लिए एक रोजगार का केन्द्र है .भिन्नता में एकता ही भारत की विशेषता है .इस एकता को तोड़ो मत राज बाबा .हमारी तो एक ही नागरिकता है की "हम सब भारतवासी है ."

मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता ....

एक फ़िल्म थी ,शाहिद कपूर की जिसे मैंने कुछ महीनो पहले देखा था ,उसमे शाहिद कपूर अपने प्रेमिका को खोजने के लिए मुंबई जाने के लिए अपने दोस्तों को बताता है ,तो उसके दोस्त ये कहकर उसे रोकने का प्रयास करते है कि "मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता "मुंबई में पिछले कुछ सालो से हो रही घटनाओ को देखकर मुझे फ़िल्म के डायलोग याद गए ,वास्तव में मुंबई और मौत एक द्दुसरे के पर्याय hote जा रहे है .मुंबई के ताजा घटनाकरण ने तो न केवल मुंबई बल्कि पुरे भारत को दहला के रख दिया है ।
आतंक का ये खूंखार चेहरा नया ज़रूर है पर इसके पीछे पुराने लोग ही छिपे है .१९९३ के विस्फोट के बाद मुंबई थोडी शांत थी .लेकिन १९९३का कला कपड़ा २००७ तक लटका रहा जब तक कि उसके आरोपियों को सजा न सुना दी गई । कुछ साल पहले मुंबई के लोकल ट्रेन के हादसे को भुलाकर लोग अपने जीवन को सामान्य कर चुके थे ,तभी एक घरेलु आतंक का रूप देखने को मिला .जब छुटभय्ये नेताओं ने एक नई आग को पैदा कर दिया जो क्षेत्रवाद और भाषावाद कि आग थी .इस आग में भी कुछ लोग मारे गए थे .वह भले ही मुंबई के नही थे पर भारत के जरूर थे और वह मरे मुंबई कि ही धरती पर ।
२६ नवम्बर को जो लोग मारे गए उनमे भी न तो सभी मुंबई के थे और न ही सभी भारत के थे ,उसमे VIDESHI भी थे पर सभी मारे गए मुंबई कि धरती पर .पुरे भारत का संगम मुंबई में ही मिलता है .शायद आतंकियो को मालूम था कि मुंबई ही ऐसी माकूल ज़गह है जहा से पुरे भारत को हिलाया जा सकता है .हुआ भी ऐसा ही .सैकडो लोगो कि कब्रगाह बन गई मुंबई.बात मुंबई कि नही आज पूरा भारत असुरक्षित हो गया है .ताज और ओबेरॉय में जो लोग मारे गए उनमे से अधिकांश धनाढ्य लोग थे जिन्होंने शायद पहली बार इतने नजदीक से आतंकवाद को देखा होगा .वो आतंकवाद ,जिसका शिकार आम आदमी ही होता रहा है ,आज बदले हुए रूप में रईसों के ऊपर गिरा हुआ था .इसी लिए शायद हमारे uddhoggpati bhi आतंकवाद पर बोलते नज़र आए .हम आम लोगो को तो अब aadat si हो गई है ।
kashmir में बढ़ते आतंकवाद से baahri लोगो ने waha जाना कम कर दिया .मेरे भी कुछ रिश्तेदार मुंबई में रहते है जो मुझे वर्षो से मुंबई बुला रहे थे ,कि कुछ दिनों के लिए mumbaai घूमने के लिए आ jao .मुंबई में बहुत si घूमने कि जगह है .लेकिन अब तक मुंबई नही जा paya .चूंकि हम उत्तर bhartiya है और jabse मुंबई में राज thaakre ने क्षेत्रवाद और भाषावाद कि nautanki पार्टी को खोला है tabse मेरे karibiyo ने मुझे bulana ही chhor दिया है .लेकिन मुझे भी लगा कि , मुंबई नही जा paya तो....... kyoki "मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता "..

बुधवार, 26 नवंबर 2008

मुंबई फ़िर निशाने पर ....

२६ तारीख रात के दस बज रहे थे , मुझे भूख महसूस हुई , मै अपना कमरा बंद कर के बाहर भोजन करने के लिए निकल गया .करीब एक घंटे के बाद जब मै कमरे में आया और टीवी खोला तो मेरी आंखे फटी रह गई .मुंबई में फ़िर विस्फोट !इस बार रूप दूसरा था इस बार विस्फोट के साथ आतंकवादी फाइरिंग भी कर रहे थे ।
एक बात गौर करने लायक है की विस्फोट दक्षिण मुंबई में हुआ जो की मुंबई का दिल माना जाता है और इसकी गिनती रिहाइशी इलाके में होती है ,जहा भारत के दो बड़े होटल ताज और ओबेरॉय स्थित है .ये ख़बर देखकर मै टीवी से चिपक गया.पल पल की जानकारी लेने लगा ,चैंनल बदलने लगा ,सभी चैंनल घूमने के बाद मै एन डी टीवी पर आ के रूक गया .मुझे एन डी टीवी की भाषा ही समझ में आ रही थी शेष चैंनल तो शोर करते नज़र आए।
मै टीवी से ऐसा चिपका की रात के चार बज गए पता ही नही चला .फ़िर थोड़ा सा लेटकर ख़बर देखने लगा ,कब आँख लगी पता ही नही चला ,सुबह ९ बजे आँख खुली तो देखा की टीवी चल रहा था और एन डी टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आ रहा था की ताज होटलमें अभी भी आतंकवादियों से मुठभेड़ जारी है एंकर कह रहा है की भारत में अब तक की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना है इसकी तुलना ९/११ की घटना से हो रही थी ।
मुझे रात में ही पता चल गया था की ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे और दो आला अफसर सहित ९ पुलिस कर्मी शहीद हो गए .ये वही हेमंत है जो साध्वी प्रज्ञा का केस देख रहे थे .इनकी गिनती जाबांज अफसरों में होती थी .सुबह तक १०० से अधिक लोग मारे गए 'और ३०० सा अधिक लोग घायल हुए .और १४ पुलिस कर्मी शहीद हो गये.मुंबई जिसके बारे में कहा जाता है की वह कभी सोती नही है ,लेकिन अब मुंबई ठहर गई है सी एस टी जहा पैर रखने की जगह नही होती थी वहा पूरी तरह से सन्नाटा पसरा था .अब तक मै मै सिर्फ़ एक बार ही मुंबई जा पाया ,वहा की भीड़ भाद और रफ्तार को नजदीक से देखा 'जिसे देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है जहा में अरबो के वारे न्यारे मिनटों में होते है .वह रफ्तारी मुंबई कैसे ठहर सकती है .
पहली बार देर रात हमले हुए जब लोग अपने अपने घरो को लौट रहे थे .ये तो तय है की इतना बड़ा हमला अचानक नही था ,ये एक पूर्व सुनियोजित आतंकवादी हमला था .एक बार फ़िर हमारी खुफिया एजेंसी नाकाम हो गई .आतंकवादी हर बार कामयाब हो रहे है। आख़िर कब तक ये चलता रहेगा ?अभी अधिक दिन नही हुए जब दिल्ली में सीरियल विस्फोट हुए ,उसके पहले जयपुर,अहमदाबाद बेंगलुरु में विस्फोट हुए .ये हो क्या रहा है पूरा भारत असुरक्षित हो गया है .इतनी खराब स्तिथि तो श्रीलंका ,बांग्लादेश,की नही है जबकि वहा संसाधन हमसे कम है .ये साल भारत के लिए बेहद ही ख़राब रहा .पुरा भारत जलता रहा .चाहे वह आसाम की घटना हो ,विस्फोटो की घटना हो या मुंबई में हुए उत्तर भारतीयों पे हमला हो या कश्मीर में श्राइन बोर्ड का विवाद हर मसले पे हम नाकाम रहे है .इन घटनाओ ने हमारे चंद्रयान मिशन की सफलता को भी फीका कर दिया है .जब हम धरती पे ही सुरक्षित नही है तो चाँद पे घर बनने का ख्वाब बेमानी होगा ।
यह तो हम भारतीयों की खासियत रही है की बड़े से बड़े विपत्तियों से तुंरत उबरकर अपने जीवन को सामान्य कर लेते है .लेकिन अब तो धैर्य भी जवाब भी देने लगा है .नेताओ की वही पुरानी घिसी पीती बातें अब बोझिल सी होने लगी है
बचपन में मुझे कभी कभी सपना आता था की मुझे कोई गोली मार रहा है या मारने के लिए दौड़ा रहा है ,तब मै मार धाड़ वाली फिल्म बहुत देखा करता था ,अब तो मै केवल रोमांस और कॉमेडी फिल्म ही देखता हूँ लेकिन अब मुझे रोज लगता है की कोई अचानक आके मुझे मार देगा .हलाकि मै कोई कोई वी आई पी नही हूँ लेकिन जो लोग मारे जा रहे है वह आम लोग ही है