शनिवार, 29 नवंबर 2008

मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता ....

एक फ़िल्म थी ,शाहिद कपूर की जिसे मैंने कुछ महीनो पहले देखा था ,उसमे शाहिद कपूर अपने प्रेमिका को खोजने के लिए मुंबई जाने के लिए अपने दोस्तों को बताता है ,तो उसके दोस्त ये कहकर उसे रोकने का प्रयास करते है कि "मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता "मुंबई में पिछले कुछ सालो से हो रही घटनाओ को देखकर मुझे फ़िल्म के डायलोग याद गए ,वास्तव में मुंबई और मौत एक द्दुसरे के पर्याय hote जा रहे है .मुंबई के ताजा घटनाकरण ने तो न केवल मुंबई बल्कि पुरे भारत को दहला के रख दिया है ।
आतंक का ये खूंखार चेहरा नया ज़रूर है पर इसके पीछे पुराने लोग ही छिपे है .१९९३ के विस्फोट के बाद मुंबई थोडी शांत थी .लेकिन १९९३का कला कपड़ा २००७ तक लटका रहा जब तक कि उसके आरोपियों को सजा न सुना दी गई । कुछ साल पहले मुंबई के लोकल ट्रेन के हादसे को भुलाकर लोग अपने जीवन को सामान्य कर चुके थे ,तभी एक घरेलु आतंक का रूप देखने को मिला .जब छुटभय्ये नेताओं ने एक नई आग को पैदा कर दिया जो क्षेत्रवाद और भाषावाद कि आग थी .इस आग में भी कुछ लोग मारे गए थे .वह भले ही मुंबई के नही थे पर भारत के जरूर थे और वह मरे मुंबई कि ही धरती पर ।
२६ नवम्बर को जो लोग मारे गए उनमे भी न तो सभी मुंबई के थे और न ही सभी भारत के थे ,उसमे VIDESHI भी थे पर सभी मारे गए मुंबई कि धरती पर .पुरे भारत का संगम मुंबई में ही मिलता है .शायद आतंकियो को मालूम था कि मुंबई ही ऐसी माकूल ज़गह है जहा से पुरे भारत को हिलाया जा सकता है .हुआ भी ऐसा ही .सैकडो लोगो कि कब्रगाह बन गई मुंबई.बात मुंबई कि नही आज पूरा भारत असुरक्षित हो गया है .ताज और ओबेरॉय में जो लोग मारे गए उनमे से अधिकांश धनाढ्य लोग थे जिन्होंने शायद पहली बार इतने नजदीक से आतंकवाद को देखा होगा .वो आतंकवाद ,जिसका शिकार आम आदमी ही होता रहा है ,आज बदले हुए रूप में रईसों के ऊपर गिरा हुआ था .इसी लिए शायद हमारे uddhoggpati bhi आतंकवाद पर बोलते नज़र आए .हम आम लोगो को तो अब aadat si हो गई है ।
kashmir में बढ़ते आतंकवाद से baahri लोगो ने waha जाना कम कर दिया .मेरे भी कुछ रिश्तेदार मुंबई में रहते है जो मुझे वर्षो से मुंबई बुला रहे थे ,कि कुछ दिनों के लिए mumbaai घूमने के लिए आ jao .मुंबई में बहुत si घूमने कि जगह है .लेकिन अब तक मुंबई नही जा paya .चूंकि हम उत्तर bhartiya है और jabse मुंबई में राज thaakre ने क्षेत्रवाद और भाषावाद कि nautanki पार्टी को खोला है tabse मेरे karibiyo ने मुझे bulana ही chhor दिया है .लेकिन मुझे भी लगा कि , मुंबई नही जा paya तो....... kyoki "मौत और मुंबई से कोई वापस नही आता "..

2 टिप्‍पणियां:

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

bahut badhiya likha hai vivek bhai...raj thakrey vote bank banane ke liye ghatiya rajniti kar raha hai...

likhte rahiye.....keep it up...

Ajeet Singh ने कहा…

Aapne vilkul sahi likha hai. Raaj Thakare vote bank ki rajneeti hi kar raha hai. Ye raajneeti pesha hi aisa hai ki unhe logon se adhik apne voye ki chinta zyada rahti hai.
Best Wishes. Likhte rahiye.