अटल जी एक कुशल राजनेता के अलावा एक अच्छे कवि भी है .उनकी कविताये कालजई है .अटल जी स्वीकारते है की राजनितिक व्यस्तता के चलते उनका कवित्व रूप उनसे दूर होता गया । मै अटल जी को भारतीय राजनीति के एक ऐसे महापुरुषों में रखना चाहूगा जो अविरल प्रतिभा का धनि है । न भूतो न भविष्यते एसा नेता होगा। उन्ही एक कविता मै अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ .जो आज के अति महत्वाकांक्षी जीवन में एक प्रेरणा का काम करेगी। अटल जी ने इस कविता को अपने जीवन में भी उतारा इसी लिए वह अपने विरोधियो के बीच में भी प्रिय रहे । और २७ दलों को एक साथ लेकर ६ साल तक हिंदुस्तान की सत्ता को संभाला । संभवतया वह विश्व के पहले नेता थे।
रचनाकार: अटल बिहारी वाजपेयी
ऊँचे पहाड़ पर,पेड़ नहीं लगते,पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,जिसका परसपानी को पत्थर कर दे,ऐसी ऊँचाईजिसका दरस हीन भाव भर दे,अभिनंदन की अधिकारी है,आरोहियों के लिये आमंत्रण है,उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है किकेवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,परिवेश से पृथक,अपनों से कटा-बँटा,शून्य में अकेला खड़ा होना,पहाड़ की महानता नहीं,मजबूरी है।ऊँचाई और गहराई मेंआकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है किऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,जिससे मनुष्य,ठूँठ सा खड़ा न रहे,औरों से घुले-मिले,किसी को साथ ले,किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
शनिवार, 18 जुलाई 2009
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
हिन्दी नही जानते का जी ..
१५ जून को लोकसभा में भाषा को लेकर थोडी नोक झोक हो गई । प्रारम्भ एक पंजाबी नेता के पंजाबी में भाषण देने से हुई जिस पर मैडम स्पीकर मीरा कुमार ने ये कहकर आपत्ति जताई की [पंजाबी में बोलने के लिए नेता जी ने पहले से कोई नोटिस नही दी है । जिसपर नेता जी ने कहा की वह हर काम पंजाबी में ही करते है । माना ये ठीक है की पंजाबी भाषा संविधान में है पर संसद की भाषा हिन्दी और अंग्रेजी ही है लगभग सभी पंजाबी नेता हिन्दी में ही बोलते है । शायद नेता जी को मराठी प्रेम की ही तरह पंजाबी प्रेम जगा हो।
भाषा को लेकर एक दिलचस्प वाकया तब हुआ जब हमारे उत्तर प्रदेश के हिन्दी प्रेमी नेता मुलायम सिंह (नेता जी) द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने अंग्रेजी में देना शुरू किया , इसपर तुंरत नेता जी उठे और जय राम को टोकते हुए बोले की क्या आपको हिन्दी नही आती ,क्या ये लन्दन की लोक सभा है । मुझे अंग्रेजी नही आती। इस पर जैराम रमेश को कहना पड़ा की ठीक है मई हिन्दी में ही बोलता हूँ। इसी तरह जब मेनका गाँधी ने भी अपने प्रश्नों को अंग्रेजी में बोलना शुरू किया तो नेता जी ने टोकना शुरू किया पर इस बार मेनका ने उन्हें झिड़क दिया और कहा की मई किसी भी भाषा में बोलू इससे आप को क्या । वही पूर्व रेल मंत्री लालू को ये सिद्ध करना पड़ा की उन्हें अंग्रेजी आती है। पर्यावरण के मसले पर बोलते हुए लालू ने ग्लोबल वार्मिंग को ग्लोबल वार्निंग कह दिया जिस पर बगल के सीट पर किसी दुसरे पार्टी के नेता ने चुटकी लेनी शुरू की इस पर लालू ने भी अपने अंदाज में बताया की "हमको भी अंग्रेजी आता है "
बात भाषा के आने या न आने का नही है पर इतना जरूर होना चाहिए की देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी भाषा का प्रयोग अधिकत्तम होना चाहिए जो अधिकत्तम लोगो की समझ में आए । मेरी समझ से हिन्दी एक एसी भाषा है जो लगभग ९० से ९५ % लोगो की समझ में आती है और वह लिख बोल सकते है कई साउथ के नेता हिन्दी बोलते नज़र आते है ।वेंकेया नायडू ,अनंत कुमार जैसे नेता बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते है नरसिम्हा राव को याद करना चाहता हूँ जो १६ भाषाओ के ज्ञाता थे लेकिन हर जगह हिन्दी ही बोलते थे .और बड़ी ही शुद्ध हिन्दी थी उनकी जबकि वह दक्षिण के थे
संसद में सांसदों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की जो हिन्दी में बोल सकते है वह हिन्दी में ही बोले श्री प्रकाश जैसवाल की तरह नही कीहर काम हिन्दी में करे और जब संसद में मंत्री पड़ की सपथ लेनी हो तो अंग्रेजी बोलने लगे । अगाथा संगमा ने एक अलग मिसाल पेश की और टूटी फूटी ही सही लेकिन हिन्दी में ही शपथ ली और सबका दिल जीत लिया ..इस मायने में मई सोनिया गाँधी की तारीफ करूँगा जिन्होंने दिन प्रतिदिन अपनी हिन्दी में सुधर किया । पर मनमोहन सिंह से निराश हूँ जो पंजाब का होने के बावजूद भी हिन्दी नही बोल paate और जब अंग्रेजी भी बोलते है तो आधा समझ में नही आता । लालकिले की प्राचीर से जो प्रधानमंत्री हिन्दी में हिन्दुस्तानी जनता से अपनी बात न कह सके उससे तो येही लगता है की वह आज भी मैकाले की नीति को भूलना नही चाहता । मनमोहन के अन्दर इतनी भी इच्छा शक्ति नही की की वह अपनी हिन्दी में कुछ sudhaar कर ले जिससे लालकिले के ऊपर खड़े होकर तो हिन्दी में बोल सके ।
राममनोहर लोहिया जो अंग्रेजी के विद्वान थे लेकिन जीवन भर हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए लड़ते रहे । हरिबंश राइ बच्चन जो अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन विश्व उन्हें उनकी हिन्दी रचनाओ के लिए जनता है । महात्मा गाँधी ने हिन्दी के महत्ता को जाना और इसके लिए उन्होंने अपनी भाषा गुजरती को भी दुतियक श्रेणी में रखा । और अंत समय उन्हें ये कहना पड़ा की "गाँधी सिर्फ़ हिन्दी जनता है "गाँधी ने कांग्रेस के जनाधार को बढ़ने के लिए हिन्दी भाषा का ही सहारा लिया । जिसमे वह पूर्णतः सफल भी हुए ।
भारत में हिन्दी एक संचार की भाषा है। साउथ का भी आदमी महाराष्ट्र में आकर हिन्दी का ही सहारा लेता है क्योकि वह मराठी नही जानता और अंग्रेजी में वह बात नही कर सकता क्योकि जिस तरह हिन्दी भाषी अंग्रेजी में कमजोर होते है उसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषी लोग भी अंग्रेजी में पारंगत नही होते। लेदेकर हिन्दी ही बचती है जिनसे लोग आपस में बातचीत करते है । दिल्ली और मुंबई दो ऐसे प्रदेश है जिनकी तरफ़ पुरे देश के लोगो की निगाहें रहती है इस लिए भी हिन्दी यहाँ एक संचार की भाषा के रूप में कार्य करती है ।
मेरा तो माना है की आप सभी भाषाओ को नही सीख सकते है पर अगर आप हिन्दी को जानते है तो ये सभी भाषाओ को जानने के बराबर कम करेगी। हिन्दी जानना ही आपके हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण है इसी लिए यु एन ओ महा सचिव बन की मून को भी नमस्कार कहने में आनंद आता है । १४ सितम्बर के दिन हर साल हिन्दी के क्षरण होने का रोना कुछ कथित बुधिजिवियो द्वरा रोया जाता है पर हकीकत ये है की हम्मे से कोई ज़मीनी स्तार पर कुछ नही करता है । अंग्रेजी हमें jaanani चाहिए की दुनिया के सामने मुरख न बन सके पर हमें अपनी मानसिकता को हिन्दीमय ही रहने देना चाहिए ताकि विदेशियों को ये लगे की भारत को समझने के लिए पहले हिन्दी को जानना जरूरी है ।भारत में अनेक विशेषताए निवास करती है इस लिए चाहिए की सभी क्षेत्रीय भाषाओ का सम्मान करते हुए हिन्दी को भारत की सार्वभौमिक भाषा बनने पर जोर दिया जाए। और संसद में किसी नेता को ये न कहना पड़े की क्या ये लन्दन की लोकसभा है जो अंग्रेजी बोले जा रहे हो .....
भाषा को लेकर एक दिलचस्प वाकया तब हुआ जब हमारे उत्तर प्रदेश के हिन्दी प्रेमी नेता मुलायम सिंह (नेता जी) द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने अंग्रेजी में देना शुरू किया , इसपर तुंरत नेता जी उठे और जय राम को टोकते हुए बोले की क्या आपको हिन्दी नही आती ,क्या ये लन्दन की लोक सभा है । मुझे अंग्रेजी नही आती। इस पर जैराम रमेश को कहना पड़ा की ठीक है मई हिन्दी में ही बोलता हूँ। इसी तरह जब मेनका गाँधी ने भी अपने प्रश्नों को अंग्रेजी में बोलना शुरू किया तो नेता जी ने टोकना शुरू किया पर इस बार मेनका ने उन्हें झिड़क दिया और कहा की मई किसी भी भाषा में बोलू इससे आप को क्या । वही पूर्व रेल मंत्री लालू को ये सिद्ध करना पड़ा की उन्हें अंग्रेजी आती है। पर्यावरण के मसले पर बोलते हुए लालू ने ग्लोबल वार्मिंग को ग्लोबल वार्निंग कह दिया जिस पर बगल के सीट पर किसी दुसरे पार्टी के नेता ने चुटकी लेनी शुरू की इस पर लालू ने भी अपने अंदाज में बताया की "हमको भी अंग्रेजी आता है "
बात भाषा के आने या न आने का नही है पर इतना जरूर होना चाहिए की देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी भाषा का प्रयोग अधिकत्तम होना चाहिए जो अधिकत्तम लोगो की समझ में आए । मेरी समझ से हिन्दी एक एसी भाषा है जो लगभग ९० से ९५ % लोगो की समझ में आती है और वह लिख बोल सकते है कई साउथ के नेता हिन्दी बोलते नज़र आते है ।वेंकेया नायडू ,अनंत कुमार जैसे नेता बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते है नरसिम्हा राव को याद करना चाहता हूँ जो १६ भाषाओ के ज्ञाता थे लेकिन हर जगह हिन्दी ही बोलते थे .और बड़ी ही शुद्ध हिन्दी थी उनकी जबकि वह दक्षिण के थे
संसद में सांसदों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की जो हिन्दी में बोल सकते है वह हिन्दी में ही बोले श्री प्रकाश जैसवाल की तरह नही कीहर काम हिन्दी में करे और जब संसद में मंत्री पड़ की सपथ लेनी हो तो अंग्रेजी बोलने लगे । अगाथा संगमा ने एक अलग मिसाल पेश की और टूटी फूटी ही सही लेकिन हिन्दी में ही शपथ ली और सबका दिल जीत लिया ..इस मायने में मई सोनिया गाँधी की तारीफ करूँगा जिन्होंने दिन प्रतिदिन अपनी हिन्दी में सुधर किया । पर मनमोहन सिंह से निराश हूँ जो पंजाब का होने के बावजूद भी हिन्दी नही बोल paate और जब अंग्रेजी भी बोलते है तो आधा समझ में नही आता । लालकिले की प्राचीर से जो प्रधानमंत्री हिन्दी में हिन्दुस्तानी जनता से अपनी बात न कह सके उससे तो येही लगता है की वह आज भी मैकाले की नीति को भूलना नही चाहता । मनमोहन के अन्दर इतनी भी इच्छा शक्ति नही की की वह अपनी हिन्दी में कुछ sudhaar कर ले जिससे लालकिले के ऊपर खड़े होकर तो हिन्दी में बोल सके ।
राममनोहर लोहिया जो अंग्रेजी के विद्वान थे लेकिन जीवन भर हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए लड़ते रहे । हरिबंश राइ बच्चन जो अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन विश्व उन्हें उनकी हिन्दी रचनाओ के लिए जनता है । महात्मा गाँधी ने हिन्दी के महत्ता को जाना और इसके लिए उन्होंने अपनी भाषा गुजरती को भी दुतियक श्रेणी में रखा । और अंत समय उन्हें ये कहना पड़ा की "गाँधी सिर्फ़ हिन्दी जनता है "गाँधी ने कांग्रेस के जनाधार को बढ़ने के लिए हिन्दी भाषा का ही सहारा लिया । जिसमे वह पूर्णतः सफल भी हुए ।
भारत में हिन्दी एक संचार की भाषा है। साउथ का भी आदमी महाराष्ट्र में आकर हिन्दी का ही सहारा लेता है क्योकि वह मराठी नही जानता और अंग्रेजी में वह बात नही कर सकता क्योकि जिस तरह हिन्दी भाषी अंग्रेजी में कमजोर होते है उसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषी लोग भी अंग्रेजी में पारंगत नही होते। लेदेकर हिन्दी ही बचती है जिनसे लोग आपस में बातचीत करते है । दिल्ली और मुंबई दो ऐसे प्रदेश है जिनकी तरफ़ पुरे देश के लोगो की निगाहें रहती है इस लिए भी हिन्दी यहाँ एक संचार की भाषा के रूप में कार्य करती है ।
मेरा तो माना है की आप सभी भाषाओ को नही सीख सकते है पर अगर आप हिन्दी को जानते है तो ये सभी भाषाओ को जानने के बराबर कम करेगी। हिन्दी जानना ही आपके हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण है इसी लिए यु एन ओ महा सचिव बन की मून को भी नमस्कार कहने में आनंद आता है । १४ सितम्बर के दिन हर साल हिन्दी के क्षरण होने का रोना कुछ कथित बुधिजिवियो द्वरा रोया जाता है पर हकीकत ये है की हम्मे से कोई ज़मीनी स्तार पर कुछ नही करता है । अंग्रेजी हमें jaanani चाहिए की दुनिया के सामने मुरख न बन सके पर हमें अपनी मानसिकता को हिन्दीमय ही रहने देना चाहिए ताकि विदेशियों को ये लगे की भारत को समझने के लिए पहले हिन्दी को जानना जरूरी है ।भारत में अनेक विशेषताए निवास करती है इस लिए चाहिए की सभी क्षेत्रीय भाषाओ का सम्मान करते हुए हिन्दी को भारत की सार्वभौमिक भाषा बनने पर जोर दिया जाए। और संसद में किसी नेता को ये न कहना पड़े की क्या ये लन्दन की लोकसभा है जो अंग्रेजी बोले जा रहे हो .....
बुधवार, 1 जुलाई 2009
कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नही मारा करता ..
बहुत दिनों बाद मै अपने आँगन पे दस्तक दे रहा हूँ। लगभग ब्लॉग की दुनिया से कट सा गया था ।
जीवन के उतार चढाव भरे माहौल में कभी कभी आदमी अपने आप से भी कट जता है .मै भी कुछ इसी तरह से कट सा गया था लेकिन फ़िर वापस आया हूँ ॥ मै जब भी निराश होता हूँ तो कवि नीरज की इस कविता को जरूर पढता हूँ..जो मेरे अन्दर के नैराश्य भाव को कुछ हद तक कम करती है ॥ दोस्तों मै नीरज की इस कविता को अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ॥
रचनाकार: गोपालदास "नीरज"
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है
जीवन के उतार चढाव भरे माहौल में कभी कभी आदमी अपने आप से भी कट जता है .मै भी कुछ इसी तरह से कट सा गया था लेकिन फ़िर वापस आया हूँ ॥ मै जब भी निराश होता हूँ तो कवि नीरज की इस कविता को जरूर पढता हूँ..जो मेरे अन्दर के नैराश्य भाव को कुछ हद तक कम करती है ॥ दोस्तों मै नीरज की इस कविता को अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर रहा हूँ॥
रचनाकार: गोपालदास "नीरज"
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है
शनिवार, 20 दिसंबर 2008
इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र...
इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र है,
कौन जाने यह भला किसका कहर है?
आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?
ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?
स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?
हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?
मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?
उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।
कौन जाने यह भला किसका कहर है?
आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?
ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?
स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?
हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?
मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?
उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
मौत...
मौत को आज मैंने जाना है,
और जीवन को भी पहचाना है।
ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।
ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।
मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।
जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।
और जीवन को भी पहचाना है।
ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।
ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।
मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।
जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।
बुधवार, 17 दिसंबर 2008
जानवर हो गए हैं हम...
साहिल थे कभी आज लहर हो गए हैं हम
इस जहाँ को सुधा दे ख़ुद ज़हर हो गए हैं हम।
आज हम ख़ुद को यहाँ ढूंढते फिरते रहे हैं
दुनिया की इस भीड़ में जाने कहाँ खो गए हैं हम।
हम जगाते थे जहाँ को रात और दिन जागकर
क्या हुआ जो आजकल ख़ुद भी सो गए हैं हम।
हमने ही लाशें बिछाई भूलकर सब रिश्तों को
याद करके उनको फ़िर क्यूँ आज रो रहे हैं हम।
जानवर थे हम कभी, आदमी फ़िर बन गए
आदमी से आज फिर जानवर हो गए हैं हम।
इस जहाँ को सुधा दे ख़ुद ज़हर हो गए हैं हम।
आज हम ख़ुद को यहाँ ढूंढते फिरते रहे हैं
दुनिया की इस भीड़ में जाने कहाँ खो गए हैं हम।
हम जगाते थे जहाँ को रात और दिन जागकर
क्या हुआ जो आजकल ख़ुद भी सो गए हैं हम।
हमने ही लाशें बिछाई भूलकर सब रिश्तों को
याद करके उनको फ़िर क्यूँ आज रो रहे हैं हम।
जानवर थे हम कभी, आदमी फ़िर बन गए
आदमी से आज फिर जानवर हो गए हैं हम।
रब ने नही बनाई जोड़ी
लगभग एक महीने से मै ''रब ने बना दी जोड़ी''फ़िल्म के दो गाने ''हौले हौले हो गया है प्यार ...''और ''तुझमे रब दीखता है ...''सुन रहा था ,मुझे दोने गाने बहुत अच्छे लगे , फ़िल्म १२ दिसम्बर को रिलीज़ होनी थी .मैंने सोच लिया था भले ही पहले दिन का पहला शो न देख पाऊ लेकिन पहले दिन जरूर देखूँगा । लेकिन मेरा दुर्भाग्य रहा की मै लगातार तिन दिन सिनेमा हॉल गया लेकिन मुझे टिकेट नही मिला .मै हर बार मायूस होकर वापस लौट आता था । मेरा लाइन में खड़ा होना बेकार चला जता था क्योकि मेरे टिकेट खिड़की तक पहुचने से पहले ही हाउसफुल का बोर्ड लग जाताथा । । मुझे तीन तक टिकेट नही मिला इससे मै और पुख्ता हो गया की फ़िल्म अच्छी है । अखबारों और चैनल में फ़िल्म की सकारात्मक प्रतिक्रिया आ रही थी । मेरी बेक्लाहत और भी बढती जा रही थी । मेरेइस बैचनी को मेरे मित्र भी जान गए थे .मैंने भी अपने आप को समझाते हुए तय किया की जब थोडी भीड़ कम होगी तो ही मै जाऊँगा । तीन दिन की मायूसी के बाद चौथे दिन मेरे लिए एक आशा की किरण जगी,जब मेरे एक मित्र ने करीब सवा दो बजे केबीच मुझे फोन किया की मै ज्योति टाकिज पे खड़ा हूँ ,तुम्हे भी तीन बजे के शो का टिकेट चाहिए क्या ?मेरे चेहरे पे एक मुस्कान आई और मैंने तुंरत हामी भर दी और तुंरत सिनेमा हाल की तरफ़ बढ़ गया।
अब मै आपको वह वाकया बताने जा रहा हूँ जिसके कारन मुझे अपने लेख का शीर्षक ''रब ने नही बनाई जोड़ी ''रखना पड़ा । सिनेमा हाल ,मै थोड़ा लेट से पंहुचा मेरे मित्र अन्दर जा चुके थे । हाल के अन्दर गार्ड टार्च जलाकर लोगो को अपने सीट पे बैठा रहा था ५ minat की फ़िल्म चल चुकी थी ,मेरे मित्र अभी हाल के अन्दर ही थे मै पंहुचा । गार्ड हम लोगो को भी बैठाने लगा । दुर्भाग्य से हम दोस्तों में , चार लड़के और दो लड़किया थी ,मेरे दो पुरूष मित्र अपने अपने महिला मित्रो के साथ अगल बगल बैठ लिए । बच गया मै और मेरे एक पुरूष मित्र । संयोग से गार्ड ने मुझे जिस सीट पे बैठने को कहा उसके बगल मेरे एक खूबसूरत लड़की बैठी थी मै भी बिना किसी संकोच के बैठ गया लेकिन जब बगल मेरे कोई खूबसूरत लड़की हो तो क्या फीलिंग होती है ये सब बखूबी जानते ही होगे । लेकिन मेरे पुरूष मित्र को ये थोड़ा अच्छा न लगा और उनकी अन्दर की भावना जुबान पे आ ही गई और उन्होंने मुझसे कह ही दिया की यार मुझे वहा बैठना था तू बैठ गया ,मैंने भी उनकी बात को मजाक बनाते हुए कहा की कोई बात नही यार तू बैठे या मै एक ही बात है ... ये तो पुरूष स्वभाव है की जब कोई खूबसूरत लड़की बगल मै बैठी हो तो आदमी थोड़ा स्मार्ट बनने की कोशिश करता ही है । हालाँकि मेरे अंदर भी एक हलचल थी लेकिन मैंने स्मार्ट बनने की कोशिश नही की । मेरे बगल , कोई अनजानी लड़की बैठी हो ये वाकया मेरे साथ पहली बार था इसलिए मै थोड़ा असहज था । मैंने सैकडो फिल्म सिनेमा हाल मै देखि है लेकिन ऐसा पहली बार था जब कोई खूबसूरत लड़की मेरे बगल मै बैठी हो । मै थोड़ा असहज हो गया ,पता नही क्यो ?लेकिन फ़िल्म रब ने बना दी जोड़ी की कहानी ज्यो-ज्यो आगे बढ़ रही थी मेरे अन्दर भी एक अजीब सा भाव उत्पन्न हो रहा था। मेरा मानना है की ऐसा अक्सर लोगो के साथ होता है जब कोई अनजान खूबसूरत लड़की बगल में बैठी हो तो वह थोड़ा असहज हो ही जाता है .मामला तब और दिलचस्प हो जाता है जब आप बैठे हो , आपका हाथ या पैर उसके हाथ या पैर से छू जाए । मैंने कई फिल्मो में देखा है की ट्रेन की मुलाक़ात ,किसी जगह की मुलाक़ात या कही भी अचानक हुई मुलाक़ात से हीरो और हेरोइन में प्रेम हो जाता है ,और फ़िल्म के समाप्त होने तक दोनों का प्रेम सफल भी हो जाता है । मेरे अन्दर भी उसी तरह की भावना उफान करने लगी ,हालाँकि मै शुरू में उस लड़की को ठीक से नही देख पाया लेकिन ये जान गया था की वह खूबसूरत है। जब मैंने अपना हाथ सीट के हत्थे पे रखा तो मेरा हाथ उसके हाथ से छू गया ,मुझे तो कुछ अजीब सा अनुभव हुआ ,जैसा की अमूमन लड़किया करती है उसके विपरीत उस लड़की ने अपना हाथ नही हटाया .शायद उसको इस बात का अहसास न हो या ये उसके लिए बड़ी बात न हो । लेकिन मेरे मन में तो उथल पुथल लगी । शायद मुझे फिल्मो की बात उस समय सत्य लगी। ज़ाहिर सी बात है की जब इस तरह का अहसास मन में होने लगे तो मूल बातो से मन भटक जाता है । मेरे हाथ और उसके हाथ जाने अनजाने में टकरा जा रहे थे ,मेरा ध्यानफिल्मो से थोड़ा हटता जा रहा था ,तभी फ़िल्म का लोकप्रिय गीत हौले हौले हो जाए रे प्यार ...शुरू हो जाता है मेरे मन ने भी यही सोचा की शायद हमारा प्यार भी कही इसी सिनेमा हाल में हौले हौले शुरू हो जाए ,और मुझे भी कहना पड़े की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। फ़िल्म अपने गति से बढ़ रही थी और शाहरुख़ अपने दोनों किरदारों को बखूबी निभा रहे थे । इंटरवल तक हमारे पैर भी एक बार टकरा गए और हम दोनों ने सॉरी कहकर अपने को बचाया । फ़िल्म के बीच बीच में मेरी नज़र उस खूबसूरती की तरफ़ घूम जा rअहि थे पर स्पष्ट चेहरा दिख नही पा रहा था क्योकि हाल में अँधेरा था । कुछ समय के लिए मै फ़िल्म में ही खो गया तो मै ने थोडी सी फ़िल्म को समीक्षात्मक रूप में देखने की कोशिश की , फ़िल्म को देखकर मुझे ॐ शान्ति ॐ की याद आ गई ,उसमे भी एक गाने में फरहा खान ने कुछ बड़े स्टार्स को लाकर नचाया था और इस फ़िल्म में भी आदित्य चोपडा ने कुछ बड़ी हेरोइनो को नचाया , फ़िल्म के एक गाने पुराणी फिल्मो के गाने को तोड़ मरोड़ कर बनाया गया था , इससे लगता है की अब फिल्मो में नए विचारों का अकाल सा होता जा रहा है वही पुराणी घिसी पीती कहानिया दर्शको को परोसी जा रही है ,हालाँकि ''रब ने बना दी जोड़ी ''को आदित्य ने थोड़ा अलग रखने की कोशिश की है । शाहरुख़ ने एक मध्यम वर्ग के कलर्क का रोल करने में भी वही पुराना टाइप्ड तरीका अपनाया ,शाहरुख़ की प्रतिभा पे शक नही किया जा सकता ,लेकिन अगर आदित्य ने उभरती प्रतिभा श्रेयश तलपडे को ये रोल देते तो और मज़ा आता । मैंने वेलकम तू सज्जनपुर में उनके अभिनय को देखा है ,लाजवाब था ।
तभी इंटरवल होता है और हाल की लाइट जलती है मुझे एक मौका मिला की मै उस खूबसूरती को गौर से निहार सकू । मेरी नज़र सहसा उसकी तरफ़ चले गए ,उसने भी बिना भाव के एक नज़र मेरी तरफ़ देखा ,पर तुंरत अपने साथ आई सहेलियों से बात करने लगी । इंटरवल में , मेरे बगल में बैठे मेरे पुरूष मित्र अब भी मुझे कोसने से न चुके । खैर मै तो दूसरी दुनिया में विचरण कर रहा था ,और इस मुगालते में था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। इंटरवल के बाद फ़िल्म शुरू होती है ,कुछ देर बाद शाहरुख़ अपने दुसरे किरदार ''राज''के रूप में गाना गाते है की ''तुझमे रब दीखता है''...जिसमे मै खो गया और मुझे भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ । फ़िल्म का ये गाना मेरे दिल को छूता है । फ़िर कुछ प्रेम संवाद फ़िल्म में चलते है पुरा हाल बड़े ध्यान से सुन रहा है और मेरा ध्यान अब भी फ़िल्म के नाम ''रब ने बना दी जोड़ी ''पे टिका है। मुझे ऐसा लगने लगा की फ़िल्म मेरे अन्दर उतर रही है और फ़िल्म की नायिका तानिया (अनुष्का ) मेरे बगल में बैठी हो । लेकिन मेरे साथ फ़िल्म के एक और कलाकार विनय पाठक जैसा दोस्त नही है । फ़िल्म धीरे धीरे समाप्त हो रही थी ,मै भी फ़िल्म चुप चाप देखता रहा और कभी कभी हाथ और पैरो के छू जाने पे असहज होता रहा । फ़िल्म तो अपने सकारात्मक क्लैमेक्स की तरफ़ जा रही थी ,लेकिन मेरे क्लैमेक्स का पता नही था । शाहरुख़ अपनी हेरोइन तानिया को अपने मूल किरदार (सुरिंदर सहनी ) के रूप में पाने में सफल हो रहे थे । तानिया ने अमृतसर के स्वर्ण मंदीर में सुरिंदर सहनी के चेहरे में ही अपने रब को देखा ,''राज'' (फ़िल्म में शाहरुख़ का दूसरा किरदार ) का प्रेम उसके लिए झूठा प्रतीत होने लगा । देखते ही देखते फ़िल्म समाप्त हो जाती है लाइट जलती है , मेरे बगल में बैठी वो खूबसूरत लड़की तुंरत उठती है और अपने सहेलियों से जोर जोर से बात करते हुए बालकनी से निचे उतारते हुए बाहर जाने लगती है , मेरा दाहिना हाथ अब भी सीट के हत्ते पे ही टिका है ,तभी मेरे पुरूष मित्र मेरा बाया हाथ पकड़कर मुझे चलने को कहते है और मै हाल से बाहर जाती उस खूबसूरती को निहार रहा था । हाल में ढाई घंटे कैसे बीते पता ही नही चला । फ़िल्म में शाहरूख की जोड़ी तो रब ने बना दी लेकिन मेरी जोड़ी रब ने नही बनाई । और फ़िल्म के शुरू में मुझे जो अहसास हुआ था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''वह फ़िल्म के अंत में काफूर हो गया ,और मेरे मुह से निकला की ,,''रब ने नही बनाई जोडी '' प्यार को कैसे आगे बढाया जता है ये मुझे मालूम नही ,और न ही मैंने किसी से वेलेंटाइन प्रेम किया है इस मामले में मै बिल्कुल गवार हूँ। इसी लिए शायद ये नही जान पाया की पिकनिक स्पॉट ,ट्रेन बस की यात्रा ,रास्ते में किसी से मुलाक़ात,या सिनेमा हाल में जब किसी से आँखे चार होती है तो वह kshan भर के लिए ही होती है । इसकी मियाद सिर्फ़ उसी समय के लिए ही होती है ,जैसा की मेरे साथ हुआ ।
अब मै आपको वह वाकया बताने जा रहा हूँ जिसके कारन मुझे अपने लेख का शीर्षक ''रब ने नही बनाई जोड़ी ''रखना पड़ा । सिनेमा हाल ,मै थोड़ा लेट से पंहुचा मेरे मित्र अन्दर जा चुके थे । हाल के अन्दर गार्ड टार्च जलाकर लोगो को अपने सीट पे बैठा रहा था ५ minat की फ़िल्म चल चुकी थी ,मेरे मित्र अभी हाल के अन्दर ही थे मै पंहुचा । गार्ड हम लोगो को भी बैठाने लगा । दुर्भाग्य से हम दोस्तों में , चार लड़के और दो लड़किया थी ,मेरे दो पुरूष मित्र अपने अपने महिला मित्रो के साथ अगल बगल बैठ लिए । बच गया मै और मेरे एक पुरूष मित्र । संयोग से गार्ड ने मुझे जिस सीट पे बैठने को कहा उसके बगल मेरे एक खूबसूरत लड़की बैठी थी मै भी बिना किसी संकोच के बैठ गया लेकिन जब बगल मेरे कोई खूबसूरत लड़की हो तो क्या फीलिंग होती है ये सब बखूबी जानते ही होगे । लेकिन मेरे पुरूष मित्र को ये थोड़ा अच्छा न लगा और उनकी अन्दर की भावना जुबान पे आ ही गई और उन्होंने मुझसे कह ही दिया की यार मुझे वहा बैठना था तू बैठ गया ,मैंने भी उनकी बात को मजाक बनाते हुए कहा की कोई बात नही यार तू बैठे या मै एक ही बात है ... ये तो पुरूष स्वभाव है की जब कोई खूबसूरत लड़की बगल मै बैठी हो तो आदमी थोड़ा स्मार्ट बनने की कोशिश करता ही है । हालाँकि मेरे अंदर भी एक हलचल थी लेकिन मैंने स्मार्ट बनने की कोशिश नही की । मेरे बगल , कोई अनजानी लड़की बैठी हो ये वाकया मेरे साथ पहली बार था इसलिए मै थोड़ा असहज था । मैंने सैकडो फिल्म सिनेमा हाल मै देखि है लेकिन ऐसा पहली बार था जब कोई खूबसूरत लड़की मेरे बगल मै बैठी हो । मै थोड़ा असहज हो गया ,पता नही क्यो ?लेकिन फ़िल्म रब ने बना दी जोड़ी की कहानी ज्यो-ज्यो आगे बढ़ रही थी मेरे अन्दर भी एक अजीब सा भाव उत्पन्न हो रहा था। मेरा मानना है की ऐसा अक्सर लोगो के साथ होता है जब कोई अनजान खूबसूरत लड़की बगल में बैठी हो तो वह थोड़ा असहज हो ही जाता है .मामला तब और दिलचस्प हो जाता है जब आप बैठे हो , आपका हाथ या पैर उसके हाथ या पैर से छू जाए । मैंने कई फिल्मो में देखा है की ट्रेन की मुलाक़ात ,किसी जगह की मुलाक़ात या कही भी अचानक हुई मुलाक़ात से हीरो और हेरोइन में प्रेम हो जाता है ,और फ़िल्म के समाप्त होने तक दोनों का प्रेम सफल भी हो जाता है । मेरे अन्दर भी उसी तरह की भावना उफान करने लगी ,हालाँकि मै शुरू में उस लड़की को ठीक से नही देख पाया लेकिन ये जान गया था की वह खूबसूरत है। जब मैंने अपना हाथ सीट के हत्थे पे रखा तो मेरा हाथ उसके हाथ से छू गया ,मुझे तो कुछ अजीब सा अनुभव हुआ ,जैसा की अमूमन लड़किया करती है उसके विपरीत उस लड़की ने अपना हाथ नही हटाया .शायद उसको इस बात का अहसास न हो या ये उसके लिए बड़ी बात न हो । लेकिन मेरे मन में तो उथल पुथल लगी । शायद मुझे फिल्मो की बात उस समय सत्य लगी। ज़ाहिर सी बात है की जब इस तरह का अहसास मन में होने लगे तो मूल बातो से मन भटक जाता है । मेरे हाथ और उसके हाथ जाने अनजाने में टकरा जा रहे थे ,मेरा ध्यानफिल्मो से थोड़ा हटता जा रहा था ,तभी फ़िल्म का लोकप्रिय गीत हौले हौले हो जाए रे प्यार ...शुरू हो जाता है मेरे मन ने भी यही सोचा की शायद हमारा प्यार भी कही इसी सिनेमा हाल में हौले हौले शुरू हो जाए ,और मुझे भी कहना पड़े की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। फ़िल्म अपने गति से बढ़ रही थी और शाहरुख़ अपने दोनों किरदारों को बखूबी निभा रहे थे । इंटरवल तक हमारे पैर भी एक बार टकरा गए और हम दोनों ने सॉरी कहकर अपने को बचाया । फ़िल्म के बीच बीच में मेरी नज़र उस खूबसूरती की तरफ़ घूम जा rअहि थे पर स्पष्ट चेहरा दिख नही पा रहा था क्योकि हाल में अँधेरा था । कुछ समय के लिए मै फ़िल्म में ही खो गया तो मै ने थोडी सी फ़िल्म को समीक्षात्मक रूप में देखने की कोशिश की , फ़िल्म को देखकर मुझे ॐ शान्ति ॐ की याद आ गई ,उसमे भी एक गाने में फरहा खान ने कुछ बड़े स्टार्स को लाकर नचाया था और इस फ़िल्म में भी आदित्य चोपडा ने कुछ बड़ी हेरोइनो को नचाया , फ़िल्म के एक गाने पुराणी फिल्मो के गाने को तोड़ मरोड़ कर बनाया गया था , इससे लगता है की अब फिल्मो में नए विचारों का अकाल सा होता जा रहा है वही पुराणी घिसी पीती कहानिया दर्शको को परोसी जा रही है ,हालाँकि ''रब ने बना दी जोड़ी ''को आदित्य ने थोड़ा अलग रखने की कोशिश की है । शाहरुख़ ने एक मध्यम वर्ग के कलर्क का रोल करने में भी वही पुराना टाइप्ड तरीका अपनाया ,शाहरुख़ की प्रतिभा पे शक नही किया जा सकता ,लेकिन अगर आदित्य ने उभरती प्रतिभा श्रेयश तलपडे को ये रोल देते तो और मज़ा आता । मैंने वेलकम तू सज्जनपुर में उनके अभिनय को देखा है ,लाजवाब था ।
तभी इंटरवल होता है और हाल की लाइट जलती है मुझे एक मौका मिला की मै उस खूबसूरती को गौर से निहार सकू । मेरी नज़र सहसा उसकी तरफ़ चले गए ,उसने भी बिना भाव के एक नज़र मेरी तरफ़ देखा ,पर तुंरत अपने साथ आई सहेलियों से बात करने लगी । इंटरवल में , मेरे बगल में बैठे मेरे पुरूष मित्र अब भी मुझे कोसने से न चुके । खैर मै तो दूसरी दुनिया में विचरण कर रहा था ,और इस मुगालते में था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''। इंटरवल के बाद फ़िल्म शुरू होती है ,कुछ देर बाद शाहरुख़ अपने दुसरे किरदार ''राज''के रूप में गाना गाते है की ''तुझमे रब दीखता है''...जिसमे मै खो गया और मुझे भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ । फ़िल्म का ये गाना मेरे दिल को छूता है । फ़िर कुछ प्रेम संवाद फ़िल्म में चलते है पुरा हाल बड़े ध्यान से सुन रहा है और मेरा ध्यान अब भी फ़िल्म के नाम ''रब ने बना दी जोड़ी ''पे टिका है। मुझे ऐसा लगने लगा की फ़िल्म मेरे अन्दर उतर रही है और फ़िल्म की नायिका तानिया (अनुष्का ) मेरे बगल में बैठी हो । लेकिन मेरे साथ फ़िल्म के एक और कलाकार विनय पाठक जैसा दोस्त नही है । फ़िल्म धीरे धीरे समाप्त हो रही थी ,मै भी फ़िल्म चुप चाप देखता रहा और कभी कभी हाथ और पैरो के छू जाने पे असहज होता रहा । फ़िल्म तो अपने सकारात्मक क्लैमेक्स की तरफ़ जा रही थी ,लेकिन मेरे क्लैमेक्स का पता नही था । शाहरुख़ अपनी हेरोइन तानिया को अपने मूल किरदार (सुरिंदर सहनी ) के रूप में पाने में सफल हो रहे थे । तानिया ने अमृतसर के स्वर्ण मंदीर में सुरिंदर सहनी के चेहरे में ही अपने रब को देखा ,''राज'' (फ़िल्म में शाहरुख़ का दूसरा किरदार ) का प्रेम उसके लिए झूठा प्रतीत होने लगा । देखते ही देखते फ़िल्म समाप्त हो जाती है लाइट जलती है , मेरे बगल में बैठी वो खूबसूरत लड़की तुंरत उठती है और अपने सहेलियों से जोर जोर से बात करते हुए बालकनी से निचे उतारते हुए बाहर जाने लगती है , मेरा दाहिना हाथ अब भी सीट के हत्ते पे ही टिका है ,तभी मेरे पुरूष मित्र मेरा बाया हाथ पकड़कर मुझे चलने को कहते है और मै हाल से बाहर जाती उस खूबसूरती को निहार रहा था । हाल में ढाई घंटे कैसे बीते पता ही नही चला । फ़िल्म में शाहरूख की जोड़ी तो रब ने बना दी लेकिन मेरी जोड़ी रब ने नही बनाई । और फ़िल्म के शुरू में मुझे जो अहसास हुआ था की ''रब ने बना दी जोड़ी ''वह फ़िल्म के अंत में काफूर हो गया ,और मेरे मुह से निकला की ,,''रब ने नही बनाई जोडी '' प्यार को कैसे आगे बढाया जता है ये मुझे मालूम नही ,और न ही मैंने किसी से वेलेंटाइन प्रेम किया है इस मामले में मै बिल्कुल गवार हूँ। इसी लिए शायद ये नही जान पाया की पिकनिक स्पॉट ,ट्रेन बस की यात्रा ,रास्ते में किसी से मुलाक़ात,या सिनेमा हाल में जब किसी से आँखे चार होती है तो वह kshan भर के लिए ही होती है । इसकी मियाद सिर्फ़ उसी समय के लिए ही होती है ,जैसा की मेरे साथ हुआ ।
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