शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

आम न लागे ख़ास ...

बहुत दिनों बाद 'अपने आंगन 'में आ रहा हूँ । मुंबई में हुए आतंकी हमलो के बाद कुछ लिखा ,उसके बाद गायब हो गया ,मित्र टोकने लगे की विवेक "आंगन आज कल सूना-सूना लग रहा है कहा गायब ही गये । मैउन्हें कुछ स्पस्ट जवाब न दे सका और सिर्फ़ मुस्करा कर कहा की जल्द ही लौटूंगा 'अपने आंगन' में । आतंकी हमलो के बाद देश में जो घटना क्रम चल रहा है उसे मै भी दूर से भोपाल में बैठा संचार माध्यमो के द्वारा देख रहा हूँ। मै तो "आम"हूँ इसलिए दिल्ली में जाकर नजदीक से "खास" लोगो के बीच गतिविधियों का जायजा नही ले सकता । दिल्ली में खूब बहस चल रही है की कैसे आतंकवाद से निपटना है। इसी निपटने के बहस में देश के गृहमंत्री ,महारास्ट्र के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को भी निपटाया गया .नए राजा और वजीर भी नियुक्त कर दिए गए । लेकिन एक यक्ष प्रश्न अभी भी बाकी है की क्या इन ख़ास लोगो के बदलने से 'आम 'लोगो की जिंदगी भी सुरक्षित हुई की नही । क्योकि इस पर बहस अभी बाकी है । दिल्ली कितनी गंभीर है वह साफ़ दिख रहा है दिल्ली में विराजमान लोगो की गंभीरता पे एक शेर याद आ गया की ॥
"पौधे झुलस गए है ,
मगर एक बात है ,
दिल्ली की नज़र में अब भी
चमन है हरा भरा ।"
२६ तारिख से लेकर आज तक १५ दिन बीत गए कोई भी ठोस आकार दिल्ली से हमारे सामने नही आ सका की हमारे आका लोग क्या आगे करेंगे । मुझे बहुत अच्छा लगा जब राहुल गाँधी ने संसद में अन्य वक्ताओं से अलग 'आम आदमी' की सुरक्षा की बात उठाई । शायद उन्हें आभास है की जिन खास लोगो की सुरक्षा में लोग लगे है उनकी गिनती आम लोगो में होती है । बहुलता भी आम लोगो की है ,और अभी जो लोग गुस्से में सडको पे मार्च कर रहे है वह भी आम लोग ही है ,मुंबई में गेटवे ऑफ़ इंडिया पे विरोध में जमा हुए लोगो में आम लोग ही ज़्यादा थे ,बस आगे की एक लाइन खास लोगो की अर्थात मुम्बैया हीरो लोगो की थी .जो शायद पहली बार इस तरह की घटना पे इतने परेशां दिख रहे है । और हो भी क्यो न ,शायद इन लोगो के लिए १९९३ का विस्फोट उतना गंभीर न रहा हो क्योकि उसमे मरने वाले सभी आम लोग ही थे और जो एक आदमी उसका आरोपी था वह इन्ही लोगो के बीच का था । लेकिन इस बार जो हमला था वह मुंबई के दिल यानी दक्षिण मुंबई पे था जहा भारत की शान ताज और मुंबई का टॉप होटल ओबेरॉय है जहा आम आदमी जाने के बारे में सोच भी नही सकता .वह तो दूर से ही अपने बच्चो को दिखता है की बेटा ये ताज होटल है जो देश के प्रमुख उधोगपति रतन टाटा का है .लेकिन जो खास लोग है उनकी सभी पार्टिया इन्ही होटलों में होती है शायद इसी लिए ये खास चिंतित है की मुंबई में यही कुछ ऐसे जगह है जहा ये अपने आनंद को पुरी तरह से भुना सकते है जब ये जगह भी असुरक्षित हो जाएगा तो क्या होगा ..मै इन ख़ास लोगो को बता दू की जब भारत का संसद महफूज नही रहा तो अन्य जगह की सुरक्षा की बात अब सोचना बेमानी होगी । जब दिल्ली ,जयपुर ,लखनऊ ,अहमदाबाद में विस्फोट हुए तो तो ये मुम्बैया हीरो विचलित नही हुए ,तब अमिताभ को कोई डर नही लगा की की वह तकिये के निचे पिस्तौल रख के सोये । लेकिन जब आतंक अपने दरवाजे पे आके खड़ा हुआ तो दुसरो का डर समझ में आया । कश्मीर में कई दशको से आतंक फैला हुआ है ,फैजाबाद ,बनारस ,सूरत,मलेगावं ,गोरखपुर जैसी छोटी जगहों पे विस्फोट हुए लेकिन सरकार सोई रही क्योकि यहाँ आम लोगो की जाने गई ,आम लोगो की पत्निया विधवा हुई ,आम लोगो के बच्चे अनाथ हुए ,। लेकिन जब हमला ताज होटल पे हुआ जहा कम से कम करोड़पति ही जाना पसंद करता है और जिसका मालिक खरबपति से भी ऊपर है तब सरकार अधिक विचलित हुई तब उसे ये अहसास हुआ की अब शायद आतंक हमारे सीने पे चढ़ चुका है । मै ये नही कहता की खास लोगो की सुरक्षा का कोई मतलब नही है उन्हें भरपूर सुरक्षा मिले क्योकि वह कही न कही हमारे व्यवस्था के लिए मत्वपूर्ण होगे । लेकिन मै ये कहना चाहता हूँ की जिन छोटी जगहों पे आतंकी हमले हुए अगर उसी समय हमारा तंत्र सचेत होकर कठोर निर्णय लेता तो आज ये नौबत ही नही आती ।
तब मुझे ये आम और खास पे टिपण्णी नही लिखनी पड़ती वैस तो आम और खास में और भी लेबल पे भिन्नता है हमारी व्यवस्था ने "आम"और "खास" लोगो के बीच एक बड़ा अन्तर करके रखा है .इसीलिए तो आम आदमी हर रोज मरने के लिए तैयार रहता है क्योकि मरने का डर उसे उसके जिंदा रहने का अहसास दिलाता है ,सुरक्षा तंत्र से घिरे लोग तो कभी जिंदा रहते ही नही। इसीलिए शायद किसी ने सही ही कहा है की
"मौत के डर से नाहक परेशां है ,
आप जिंदा कहा है की मर जायेगे "
और यही बात मै भी कहता हूँ की "आम न लागे खास "अर्थात जिंदगी तो सिर्फ़ आम लोगो के पास ही है।

11 टिप्‍पणियां:

Chaitanya Chandan ने कहा…

bahut khoob likha hai aapne. yadi is lekh ko bahatreen ki shreni me rakha jaye to galat nahin hoga. aapne jo aam aur khas ki surakha ko lekar sawal uthaye hai, wah kabile tareef hai. likhte rahiye...
shubhkamnayen...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने

खूब लिखें,अच्छा लिखें

प्रकाश गोविंद ने कहा…

क्या बात है जनाब !
बहुत सही कहा आपने !
"आम आदमी हर रोज मरने के लिए
तैयार रहता है क्योकि मरने का डर उसे
उसके जिंदा रहने का अहसास दिलाता है ,
सुरक्षा तंत्र से घिरे लोग तो कभी जिंदा
रहते ही नही।

मौलिक लेख और विचारों के लिए बधाई !

मेरी शुभकामनाएं

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

कलम से जोड्कर भाव अपने
ये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

bijnior district ने कहा…

हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। अच्छा लिखे। बढिया लिखे। बधाई।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर ...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क्या कहने, आप ने अपनी बात बहुत अच्छे ढंग से रक्खी, पर आम या ख़ास, मौत तो मौत ही है, देख कर नही आती, आतंकी देख कर नही मारते, पर आपका कहना उचित है, आम आदमी की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी की ख़ास आदमी की

Aparna ने कहा…

lekh maolik hai,prashn sahi hai...likhte rahiye sawal uthana bahut jaruri hai sawal uthate rahiye ...

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

हिन्दी ब्लॉग जगत में प्रवेश करने पर आप बधाई के पात्र हैं / आशा है की आप किसी न किसी रूप में मातृभाषा हिन्दी की श्री-वृद्धि में अपना योगदान करते रहेंगे!!!
इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए!!!!
स्वागतम्!
लिखिए, खूब लिखिए!!!!!


प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें

Manoj Kumar Soni ने कहा…

सच कहा है
बहुत ... बहुत .. बहुत अच्छा लिखा है
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है
कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें .(हटाने के लिये देखे http://www.ucohindi.co.nr )
कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.ucohindi.co.nr

Ajeet Singh ने कहा…

Vivek aapne aam aur khas ke beech jo antar hai use bahut hi umda tarike se uthaya hai. Bahut sahi likha hai aapne ki aam na lage khas...
Likhte rahiye...!